प्यारभरी कोई नब्ज लिखें ... तो वो तुम हो
धुप में थंडी छांव मिले ... तो वो तुम हो
भुले को अपना गांव मिले ... तो वो तुम हो
माटी में पहला अंकुर सजे ... तो वो तुम हो
दूर कहीं मधूर संतूर बजे ... तो वो तुम हो
बहार में ही कुछ फुल मुरझा जाते है शायद
पतझड में भी जो फुल खिलें ... तो वो तुम हो
- रुपेश तेलंग
१८-०३-२०१६
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